चंद्र गहना से लौटती बेर कविता का सारांश व महत्वपूर्ण प्रश्न
चंद्र गहना से लौटती बेर पाठ के लेखक कवि केदारनाथ अग्रवाल हैं। चंद्र गहना से लौटती बेर कविता ग्रामीण अंचल की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन करती है। कवि चंद गहना नामक स्थान से लौट रहे हैं और रास्ते में उन्हें खेत खलिहान दिखाई देते हैं जो उस गांव से लौटते समय वह देखते हैं। उन्होने सभी चित्रों का वर्णन चंद्र गहना से लौटती बेर कविता में किया गया है। कवि कहता है कि
देख आया चंद्र गहना (मैं चंद्र गहना गांव देख आया हूं। )
देखता हूँ दृश्य अब मैं (मुझे अब कुछ ऐसे दृश्य दिखाई दे रहे हैं।)
मेड़ पर इस खेत की बैठा अकेला। (मैं इस खेत की चारदीवारी पर अकेला बैठा हूं।)
एक बीते के बराबर (एक हथेली के बराबर)
यह हरा ठिगना चना, (छोटा सा यह चने का पेड़)
बाँधे मुरैठा शीश पर
छोटे गुलाबी फूल का
सजकर खड़ा है।
छोटी से गुलाब फूल का साफा बांधकर सज करके खड़ा है।
पास ही मिलकर उगी है
बीच में अलसी हठीली
पास ही अलसी के छोटे-छोटे पौधे भी हो गए हैं, जो बिना उगाए जाते हैं इसलिए अलसी को हठीली कहा है।
देह की पतली, कमर की है लचीली
नील फूले फूल को सर पर चढ़ा कर
कह रही, जो छुए यह
दूँ हृदय का दान उसको।
कवि कहता है कि अलसी का पेड़ बहुत पतला सा है इसलिए इसकी देह पतली है। उसकी कमर लचीली है। और उस पर नीले नीले फूल खिले हुए हैं। वह कहती है कि जो मुझे छू लेगा उसे मैं अपने हृदय का दान दूंगी ।
और सरसों की न पूछो-
हो गयी सबसे सयानी,
सरसों के पौधे थोड़े बड़े होते हैं। इसलिए सियानी कहा है।
हाथ पीले कर लिए हैं
ब्याह-मंडप में पधारी
सरसो को देखकर ऐसे लग रहा है कि वह किसी विवाह के मंडप में आ गई है।
फाग गाता मास फागुन
आ गया है आज जैसे।
आज फाल्गुन का जो महीना है वह ऐसे लग रहा है कि जैसे गीत गा रहा हूं।
देखता हूँ मैं : स्वयंवर हो रहा है,
और इन सबको देखकर ऐसा लग रहा है कि स्वयंवर हो रहा है।
प्रकृति का अनुराग-अंचल हिल रहा है
इस विजन में,
दूर व्यापारिक नगर से
प्रेम की प्रिय भूमि उपजाऊ अधिक है।
कवि कह रहा है कि यहां पर प्रकृति अपना अनुराग आंचल खिला रही है। चारों तरफ प्राकृतिक मनोरम वातावरण बना हुआ है। और यह वातावरण जो है शहरों के भीड़भाड़ वाले शहरों के मुकाबले यहां पर गांव के लोगों ने प्रेम की भावना अधिक पाई जाती है।
और पैरों के तले है एक पोखर,
उठ रहीं इसमें लहरियाँ,
मेरे पाओं के तले एक छोटा सा तालाब है जिसमें छोटी छोटी लहरी आ रही है।
नील तल में जो उगी है घास भूरी
ले रही वो भी लहरियाँ।
इस पोखर के नीले तले में जो एक भूरी सी घास उग रही है, वह भी लहरिया ले रही है।
एक चांदी का बड़ा-सा गोल खम्भा
आँख को है चकमकाता।
उसने मुझे एक चांदी का बड़ा सा गोल खंबा दिखाई दे रहा है जिससे मेरी आंखों में चमक आ रही है।
हैं कई पत्थर किनारे
पी रहे चुप चाप पानी,
प्यास जाने कब बुझेगी!
किनारे पर पत्थर पड़े चुपचाप पानी पी रहे हैं।
चुप खड़ा बगुला डुबाये टांग जल में,
कवि कह रहा है कि पता नहीं पत्थरों की प्यास कब बुझेगी और यह चुपचाप पानी पीते जा रहे हैं और एक बगुला अपनी टांग जल में डुबोकर के खड़ा है।
देखते ही मीन चंचल
ध्यान-निद्रा त्यागता है,
जैसे ही उसे कोई मछली दिखाई देती है तो वह अपनी निद्रा से जाग जाता है। पहले सोने की एक्टिंग करता है।
चट दबा कर चोंच में
नीचे गले को डालता है!
गले की डालता है
जैसे ही मछली दिखाई देती है तो वह अपनी ध्यान निद्रा त्याग देता है। और अपने नीले गले में मछली को दबा करके खा लेता है।
एक काले माथ वाली चतुर चिड़िया
श्वेत पंखों के झपाटे मार फौरन
टूट पड़ती है भरे जल के हृदय पर
एक उजली चटुल मछली
चोंच पीली में दबा कर
दूर उड़ती है गगन में!
कवि कहता है कि तभी एक काले माथे वाली चतुर चिड़िया आती है जो एक मछली को अपनी सोच में लेकर के दूर आकाश में उड़ जाती है।
औ’ यहीं से-
भूमि ऊंची है जहाँ से-
रेल की पटरी गयी है।
ट्रेन का टाइम नहीं है।
मैं यहाँ स्वच्छंद हूँ,
जाना नहीं है।
कवि कहता है कि पास ही रेल की पटरी दिखाई दे रही है। अभी ट्रेन का टाइम नहीं हुआ है। इसलिए मैं अभी कहीं जाना नहीं है। मैं स्वतंत्र हूं।
चित्रकूट की अनगढ़ चौड़ी
कम ऊंची-ऊंची पहाड़ियाँ
दूर दिशाओं तक फैली हैं।
यहीं पर मुझे चित्रकूट की पहाड़ियां दिखाई दे रही है जो काफी दूर तक फैली है।
बाँझ भूमि पर
इधर उधर रीवां के पेड़
कांटेदार कुरूप खड़े हैं।
कवि कहता है पास ही कांटेदार कुरूप पेड़ लगे हुए हैं।
सुन पड़ता है
मीठा-मीठा रस टपकाता
सुग्गे का स्वर
टें टें टें टें;
सुन पड़ता है
वनस्थली का हृदय चीरता,
उठता-गिरता
सारस का स्वर
टिरटों टिरटों;
यहां पर कवि को सुखी का स्वर सुनाई दे रहा है और उसे लग रहा है कि यह जंगल का हृदय चीरता हुआ आ रहा है। सारस का स्वर भी उसे सुनता है।
मन होता है-
उड़ जाऊँ मैं
पर फैलाए सारस के संग
अब कवि का मन करता है कि वह सारस के साथ पंख लगा कर के उड़ जाए।
जहाँ जुगुल जोड़ी रहती है
हरे खेत में,
सच्ची-प्रेम कहानी सुन लूँ
चुप्पे-चुप्पे।
कवि कहता है कि सारस की जहाँ जोड़ी रहती है। मैं उसके साथ चले जाओ और वहां पर उनकी प्रेम कहानी को सुनता रहूं। इस प्रकार से कवि का मन सारस के साथ उड़ कर जाने को करता है। और सारस जहां रहते हैं, वहां पर चुपके चुपके उनकी प्रेम कहानी सुन सके। ऐसे उसकी मन की भावना को अपनी इस कविता में व्यक्त करता है।