दासप्रथा | IGNOU MA HISTORY NOTES
रोमन अभिजात वर्ग जो रोमन साम्राज्य में अमीर वर्ग था। उसने साम्राज्य के पश्चिमी इलाकों में अपनी बड़ी-बड़ी जमीनी हासिल कर रखी थी तात्पर्य जिनको भूमिपति कहा जाता है। उनके पास बहुत बहुत सारी जमीन थी। अर्थात् 75 एकड़ से लेकर 100 एकड़ तक की जमीन प्रति व्यक्ति के पास हुआ करती थी। इतनी ज्यादा उनके पास जमीन थी। इन इलाकों पर कब्जा जमाए जाने से दासप्रथा की संभावना और बढ़ गई।
दास का उपयोग किस लिये किया जाता था –
इतनी ज्यादा अभिजात वर्ग पास जमीन होने लगेंगी। उसकी देखरेख के लिए व खेती करवाने के लिए, मुख्य रूप से लेकर खेती के लिए, दासों की आवश्यकता पड़ी। यहाँ दासो की स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब थी। पश्चिमी यूरोप की कृषि व्यवस्था में बड़े आकार के जमींदार थे। पश्चिमी यूरोप की जो कृषि व्यवस्था थी जिसमें इतने सारे जमीदार रखे गए थे। उसे लैटिफुंडीया का नाम दिया गया था। बड़े भूपति यानि लैंटीफुंडीया और रोमन साम्राज्य इन दोनो में कोई खास अंतर नहीं था।
प्राचीन ग्रीस की वजह रोमन अभिजात वर्ग में ज्यादा दासप्रथा देखने को क्यों मिलती थी –
प्राचीन ग्रीस में बड़ी से बड़ी यह संपत्ति ज्यादातर 75 से लेकर 100 एकड़ की हुआ करती थी। 100 एकड़ की संपत्ति, एक आधी किसी गिने चुने व्यक्ति पर थी। परंतु रोमन अभिजात वर्ग की लेडीफुंडिया में कई हजार एकड़ होना आम बात थी।
तात्पर्य लैटीफुंडीया में सौ – दो सौ एकड़ की बात नहीं बल्कि कई हजार एकड़ का होना भी आम बात थी। लैटीफुंडीया मेंं इतनी ज्यादा जमीन थी। इसी वजह से लैटीफुंडीया में सबसे ज्यादा दासप्रथा में देखने को मिलती है। खेती भी दास द्वारा चलाई जाती थी।
जबकि प्राचीन ग्रीस में खेतों का आकार काफी छोटा होता था। इसलिए वहां दासप्रथा के विस्तार की संभावनाएं कम थी। तात्पर्य यहाँ दासप्रथा कुछ ज्यादा नहीं थी। वहीं लैटीफुंडीया में अगर देखा जाए तो वहां पर बहुत ज्यादा थी। हम यह भी कह सकते हैं कि लैटीफुंडीया से ही दासप्रथा उभार कर आई है।
लैटीफुंडीया में असंख्य दास को काम पर लगाया जा रहा था, जिसकी कोई गिनती नहीं थीं। इतना दास लैटीफुंडीया के अंदर काम करने के लिए लगाया जा रहा था। केवल इटली की बात की जाएगा तो इटली में केवल 225 और 42 ईसापुर्व के मध्य दासों की संख्या 600000 से बढ़कर 3200000 हो चुकी थी। संख्या इतनी ज्यादा बढ़ गई थी। रोमन कानून के तहत दासों को संपत्ति माने थे। अपने फायदे के लिए जिसको सिर्फ उपयोग करो।
दास के लिए किस शब्द का उपयोग किया जाता था –
आमतौर पर दास के लिए सर्वस शब्द का इस्तेमाल होता था। एक वस्तु के रूप में दासो को देखा जाता था जिन्हें पशु की तरह बाजार में खरीदा और बेचा जा सकता था। यहां पर दासों की सबसे बेकार स्थित रही थी। उन्हें जानवरों की तरह, बाजार में दासों को खरीदा भी जाता था और बेचा भी जाता था।
किन कार्यों के लिए दासो का उपयोग किया जाता था –
कृषि, खनन और हस्तशिल्प उत्पादन में इन्हें सबसे ज्यादा लगाया जाता था। सबसे ज्यादा हस्तशिल्प उद्योग में लगया जाता था। 90% काम दासों से करवाया जाता था। खेतों और खान में काम करने वाले दासों को अधिकतर जंजीर से बांधकर रखा जाता था ताकि यह भाग न जाए। क्योंकि यह सब खरीदे हुए दास होते थे। सरकारी दफ्तरों में दासों को लिपिक के रूप में नियुक्त किया जाता था। अधिकांश दास जो है वह लैटीफुंडीया में काम करते थे।
दासों के मध्य एकता कायम ना हो इसके लिए क्या किया जाता था –
वही दासो के मध्य एकता कायम ना हो, इसके लिए शासक बराबर उनके ऊपर नजर व चौकन्ना रहता था। अगर दासो के बीच में एकता कायम हो गई तो वह लोग विद्रोह कर सकते थे। ऐसे कुल मिलाकर 3 विद्रोह में देखने को मिलते है। दासों पर रोमन साम्राज्य कड़ा नियंत्रण रखता था और इसे बनाये रखने के लिए, उसके लिए उन पर काफी जुल्म करता था। जबकि दास अलग-अलग भाषाएं बोलते थे क्योंकि उन्हें अलग-अलग जगह से खरीदा जाता था। दास ने कई बार आंदोलन और विद्रोही भी किए थे।
विद्रोह –
तीन प्रमुख दास विद्रोह के प्रमाण में मिलते हैं –
- पहला दास विद्रोह सिसली में हुआ था जो कि 136 से लेकर 132 ईसापुर के बीच में हुआ।
- दूसरा दास विद्रोह इसी दीप देखने को मिलता है, जो कि 104 से लेकर 120 ईसापुर्व में हुआ।
- तीसरा दास विद्रोह देखने को मिलता है। वह 73 से लेकर 71 ईसापुर्व के बीच में।
तीसरा दास विद्रोह –
तीसरा दास विद्रोह सबसे बड़ा भयंकर माना जाता है। माना जाता है कि यह दास विद्रोह सबसे ज्यादा गंभीरता वाला था जिसे स्पार्टाकस विद्रोह नाम दिया गया है। परंतु इन सभी को बाद में नर्मदा से कुचल दिया गया और सभी दासो को उसकी उसी स्थिति वापस भेज दिया गया।
दास समाज –
मानव इतिहास में किसी भी समाज में इतने बड़े और व्यापक पैमाने पर दासों का उपयोग नहीं किया गया था। इसलिए प्राचीन रोम समाज को दास समाज भी कहा जा सकता है। क्योंकि उत्पादन के लिए वहां पर काफी बड़े पैमाने पर दास श्रमिकों को काम पर लगाया गया था।