संप्रभुता की परिभाषा व विशेषताएँ | IGNOU MA BA NOTES IN HINDI

आज हम संप्रभुताके बारे में चर्चा करेंगे जिसमें हम समझेगें की संप्रभुता क्या है, इसकी क्या परिभाषा हो सकती है तथा इसकी कौन-कौन सी विशेषताएं संप्रभुता में निहित होती है।

संप्रभुता की परिभाषा –

  • संप्रभुता वह सर्वोच्च शाक्ति है जिसके माध्यम से राज्य आंतरिक रुप से अपने आदेशों का पालन सभी मनुष्य और समुदायों से करवाता है। साथ ही बाहरी रूप से वह किसी अन्य संप्रभु से निर्देशित नहीं होता। अर्थात संप्रभुताका अर्थ सर्वोच्च शक्ति से है।
  • संप्रभुताराज्य को मिली हुई वह सर्वोच्च सत्ता है। जिसके माध्यम से वह अपने अंतर्गत निवास करने वाले समस्त नागरिकों तथा व्यक्तियों के समुदायों पर सर्वोच्च अधिकार रखती है और अपने आदेशों का पालन करवाती है और ऐसा न करने पर दंड की शक्ति भी रखती है।
  • इसी संप्रभुता के आधार पर राज्य अपने ही समान दूसरे राज्य के साथ अपनी इच्छा अनुसार संबंध स्थापित कर सकता है। इसके बारे में ऑस्टिन ने कहा कि यदि किसी समाज के अधिकांश व्यक्ति किसी निश्चित उच्चतर व्यक्ति की आज्ञा का आदतन पालन करते हैं और जो सब अपने ही जैसा किसी दूसरे उच्चतर व्यक्ति की आज्ञा का पालन न करता हो, वह निश्चित उच्चत्तर व्यक्ति उस समाज का संप्रभु है।

संप्रभुता की विशेषताएं

पहली निरंकुशता या अस्मिता

संप्रभुता के ऊपर अन्य किसी व्यक्ति का प्रभुत्व नहीं होता जो उसके अधिकारों को सीमित करने की क्षमता रखता हो। कानून, राज्य के अंदर निवास करने वाले प्रत्येक नागरिक व नागरिकों के समूह को संप्रभु के आदेशों का पालन करना अनिवार्य है। संप्रभु ही विधि निर्माण का मुख्य स्रोत होता है जो समस्त व्यक्तियों को मान्य है, अर्थात संप्रभुता असीमित है।

दूसरा सर्व व्यापकता

संप्रभुता की सर्व व्यापकता से तात्पर्य देश की समस्त वस्तुओं पर पूर्ण अधिकार एवं नियंत्रण होता है। कोई भी उसके नियंत्रण से मुक्त होने का दावा नहीं कर सकता। साथ ही राज कुछ विशेष व्यक्तियों को अपनी इच्छा से ही कुछ अधिकार प्रदान कर सकता है या किसी प्रांत को स्वायत्तता प्रदान कर सकता है परंतु ऐसा करने पर भी संप्रभु की व्यापकता पर कोई असर नहीं पड़ता।

तीसरा स्थिरता

संप्रभुता स्थाई है। इसका राज्य के साथ अटूट संबंध है। दोनों को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता। संपूर्णता का नाश राज्य के नाश के समान होता है। संप्रभु व्यक्ति की मृत्यु होने पर भी संप्रभुता का नाश नहीं होता क्योंकि उसका प्रयोग कोई अन्य दूसरे व्यक्ति करता है। हम कह सकते हैं कि सरकार में ही परिवर्तन होता है। संप्रभुता अक्षुण्ण होती है।

चौथा अदेयता

अदेयता का तात्पर्य संप्रभुता अपनी संप्रभुता तक किसी दूसरे को नहीं दे सकता। ऐसा करने पर उस व्यक्ति का स्वता ही अंत हो जाएगा। अर्थात वह संप्रभु नहीं बना रह सकता। इसके बारे में लीवर ने कहा कि संपूर्णता एक वृक्ष के समान है जो अनेक विकास के अधिकार को किसी अन्य व्यक्ति के अधिकार में नहीं छोड़ सकता क्योंकि ऐसा करने पर उसका अंत हो जाएगा।  यदि कोई राज्य अपने राज्य के किसी भाग को दूसरे राज्य को सोता है तो उससे उसकी संप्रभुता उस भाग पर से समाप्त हो जाएगी तथा उस भाग पर दूसरे दूसरा अपनी संपूर्णता कायम करेगा।

पांचवा अविभाज्य

संपूर्णता का विभाजन नहीं किया जा सकता क्योंकि वह अविभाज्य है। किसी राज्य में दो संप्रभु नहीं हो सकते क्योंकि सर्वोच्च इसका विभाजन असंभव है। हेनरी क्ले ने कहा कि संप्रभुता एक है। उसकी विभक्त करने का मतलब उसका अंत करना है। क्योकिं वह राज्य की सर्वोच्च सत्ता है। अर्धसर्वोच्चत्ता या सम्पुर्णता की बात करना उसी तरह है जैसे त्रिभुज की बात करना। हम कह सकते हैं कि संप्रभुता वह मौलिक निरंकुश एवं असीम शक्तियां है जो राज को अपनी समस्त शक्तियों तथा उसकी समस्त संस्थाओं को प्राप्त है।

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