स्वतंत्रता की अवधारणा | IGNOU POLITICAL SCIENCE NOTES IN HINDI
आज हम स्वतंत्रता की अवधारणा की चर्चा करेंगे। स्वतंत्रता को अंग्रेजी में Liberty कहते हैं। इसकी उत्पत्ति लेटिन भाषा के शब्द Liber से हुआ है। जिसका अर्थ है बंधनों का अभाव अर्थात मनुष्य की इच्छा और कार्य पर किसी प्रकार की रुकावट या मर्यादा का ना होना। प्रकृति द्वारा प्राप्त अधिकारों में स्वतंत्रता का अधिकार सबसे महत्वपूर्ण है क्योंकि मनुष्य स्वतंत्र ही जन्म लेता है। अतः स्वतंत्रता मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार है।
स्वतंत्रता की अवधारणा –
1789 के मानव अधिकार घोषणा पत्र के अनुसार स्वतंत्रता वह शक्ति है जिसके आधार पर मनुष्य कोई भी ऐसा काम कर सकता है जो दूसरे को हानि नहीं पहुंचायें।
लास्की के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ उस वातावरण की स्थापना से है जिसमें मनुष्य को अपने पूर्ण विकास के लिए समान अवसर प्राप्त हो सके।
हरबर्ट स्पेंसर के शब्दों में प्रत्येक मनुष्य यह करने के लिए स्वतंत्र है जिसकी वह इच्छा रखता है। यदि वह किसी अन्य मनुष्य की समान स्वतंत्रता का हनन नहीं करता है। मैकेंजी के अनुसार स्वतंत्रता सब प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव को नहीं कहते अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है। कोल के अनुसार बिना किसी बाधा के अपने व्यक्तित्व का प्रकट करने का अधिकार का नाम ही स्वतंत्रता है। महात्मा गांधी के अनुसार स्वतंत्रता का अर्थ नियंत्रण का अभाव नहीं बल्कि व्यक्ति के विकास की अवस्था की प्राप्ति है।
इन परिभाषों के आधार पर कहा जा सकता है कि आत्मविकास के लिए वास्तविक अवसर का नाम स्वतंत्रता है। सामाजिक ढांचे को संगठित रखते हुए व्यक्ति को अधिक से अधिक स्वतंत्रता प्राप्त हो। सभी व्यक्तियों को समान अवसर एवं समान स्वतंत्रता प्राप्त हो जिससे व्यक्ति अपना आत्मविकास कर सके। इन परिभाषा के आधार पर स्वतंत्रता के दो रूप होते हैं।
स्वतंत्रता के दो रूप –
पहला नकारात्मक स्वतंत्रता,
- नकारात्मक स्वतंत्रता के प्रबल समर्थक बेंथम, मिल, लॉ व स्मिथ थे। उनका मानना है कि व्यक्ति विवेकशील प्राणी है जो सभी सही या गलत का आकलन कर सकता है। जब व्यक्ति धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक रूप से स्वतंत्र होंगे तभी वह अपना सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। इसके साथ ही व्यक्तिवादी विचारधारा राज्य को एक आवश्यक बुराई मानते हैं।
- वह कहते हैं कि व्यक्ति के कार्यों में राज्य का हस्तक्षेप कम से कम होना चाहिए। यह हस्तक्षेपवादी राज्य की अवधारणा को महत्व देते हैं। अर्थात राज सीमित कार्य करें। यहां राज्य का कार्य केवल आंतरिक व बाहरी सुरक्षा के कार्य तक ही सीमित किया जाता है। शासन वही अच्छा है जो कम से कम कार्य करें। नकारात्मक स्वतंत्रता कीविचारधारा पूंजीवाद का समर्थन करती है। इस विचारधारा नें व्यक्ति के तीन अधिकारों पर जोर दिया जिसमें व्यक्ति का जीवन, संपत्ति व स्वतंत्रता का अधिकार। यह नकारात्मक स्वतंत्रता है।
दूसरा सकारात्मक स्वतंत्रता
- सकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक रूसो, ग्रीन लास्की और व्हीकल थे। इनका मानना है कि स्वतंत्रता सभी व्यक्तियों को समान होनी चाहिए तथा राज्य द्वारा उस पर प्रतिबंध आवश्यक है। यह सीमित स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं। अर्थात स्वतंत्रता के माध्यम से एक व्यक्ति दूसरे की स्वतंत्रता को हानि नहीं पहुंचा सके। अर्थात व्यक्ति पर राज्य का युक्तियुक्त प्रतिबंध आवश्यक है।
- सकारात्मक स्वतंत्रता कानून का समर्थन करती है। इनका मानना है कि राज्य की दृष्टि में सभी व्यक्ति समान हैं तो उनकी स्वतंत्रता भी सामान्य रूप से प्राप्त होनी चाहिए। शांति व्यवस्था स्थापित करने के लिए कानून का होना अति आवश्यक है। सकारात्मक स्वतंत्रता लोक कल्याणकारी राज्य का समर्थन करती है क्योंकि यह प्रत्येक व्यक्ति के राज्य ऐसा प्रयास करेगा जिसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं होता। यहां सभी के विकास की बात कही गई है