सत्ता क्या है व इसकी प्रकृति कैसी है। सत्ता के प्रकार । शक्ति व सत्ता । IGNOU BSOC-133 NOTES IN HINDI

आज हम सत्ता की अवधारणा का अध्ययन करेंगे किसत्ता क्या है, इसकी प्रकृति कैसी है। सत्ताके कौन-कौन से प्रकार होते हैं तथा शक्ति व सत्तामें क्या संबंध है?

सत्ता वह आचरण है जिसके आधार पर कोई भी अपनी शक्ति का प्रयोग करता है।सत्ता ही अधिकारों को कानूनी रूप प्रदान करने वाली वस्तु है। जहां प्रभाव तथा शक्ति राजनीतिक विचारों का मूल उपकरण है। वही राजव्यवस्था रूपी शरीर की आत्मा है। सत्ताएक प्रकार का औचित्रपूर्ण प्रभाव है।

  1. 1955 में यूनेस्को की एक रिपोर्ट के अनुसारसत्ता एक स्वीकृत सम्मानित ज्ञान तथा औचित्रपूर्ण शक्ति है।
  2. हर्बर्ट साइमन ने कहा कि सत्ताका अस्तित्व तभी होता है जब वरिष्ठ एवं अधीनस्थों के बीच संबंध स्थापित हो।
  3. रो के अनुसार व्यक्ति या व्यक्ति समूह के राजनीतिक विषयों के निर्माण तथा वाणिज्य व्यवहार को प्रभावित करने का अधिकार है।
  4. इससे स्पष्ट होता है किसत्ता एक ऐसी सहमति और औचित्रपूर्ण अधिकार है जो कानूनी दावे के साथ दूसरे के व्यवहार में परिवर्तन करने के लिए अपनाई जाती है। यह औपचारिक भी है क्योंकि यह राजनीतिक दावे को स्थापित करती है।

सत्ता की प्रकृति –

सत्ता की प्रकृति के दो सिद्धांत प्रतिपादित हैं।

  • पहला औचितपूर्णसत्ता सिद्धांत, जिसमेंसत्ता का प्रभाव ऊपर से नीचे की तरफ जाता है। सत्ताआदेश देने का अधिकार है जिससे नौकरशाही का गठन होता है।
  • दूसरा स्वीकृत सिद्धांत के अनुसारसत्ता कानूनी रूप से केवल औपचारिक होती है। उसे वास्तविक आधार पर ही प्राप्त होता है। जब अधीनस्थों द्वारा उसकी स्वीकृति होती है जिसका प्रयोग व्यवहारवादियों ने किया।
सत्ता के प्रकार

मैक्स वेबर ने के अनुसार सत्ता तीन प्रकार के होती है।

  • पहली परंपरागत सत्ता, जब अधिनस्थ अपने उच्चाधिकारियों के आदेशों का पालन करते हैं तथा वह पालन इसलिए करते हैं कि ऐसा हमेंशा से ही होता आया है। इसलिए इसे परंपरागतसत्ता कहते हैं।
  • दूसरा बौद्धिक सत्ता या कानूनी सत्ता या तर्क विधिक सत्ता, इसमें अधीनस्थ व वरिष्ठ के किसी आदेश कानूनी और औचित्रपूर्ण होने के कारण स्वीकृत करते हैं। उसे बौद्धिक व कानूनीसत्ता कहते हैं।
  • तीसरा चमत्कारिक सत्ता या करिश्माई सत्ता, जब अधीनष्ठ वरिष्ठ अधिकारियों के व्यक्तित्व के कारण उससे आज्ञा मांगते हैं व उसे स्वीकार करते हैं। तब हम उसे चमत्कारिकसत्ता के नाम से जानते हैं।
सत्ता व शक्ति –

सत्ताऔर शक्ति के बारे में कहा जाता है कि यह दोनों एक दूसरे के पूरक है। परंतु दूसरी बात यह है कि यह एक दूसरे के पूरक होने के बावजूद एक-दूसरे से भिन्न भी है।

  • पहलासत्ता आदेश देने की क्षमता है जो जरूरत पड़ने पर दूसरे पर थोपी जा सकती है। इसके अतिरिक्तसत्ता औचित्रपूर्ण स्वीकृत अधिकार का नाम है।
  • दूसरा शक्ति का आधार भौतिकवाद है, परंतुसत्ता का आधार औचित है।
  • तीसरा सत्ताधारी के बिना शक्ति असंस्थागत तथा अनिश्चित होती है। सस्ता संस्थागत तथा निश्चित होती है। दूसरी ओर शक्ति के बिनासत्ता अप्रभावशाली होती है।
  • चौथासत्ता की बाध्यता के पीछे शक्ति होती है, किंतु जब शक्ति का प्रयोग किया जाता है, अर्थात धनात्मक शक्ति से लागू किया जाता है। तब वह सत्तानहीं कहलाती है।  

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