बीती विभावरी जाग री कविता – जयशंकर प्रसाद जी

बीती विभावरी जाग री कविता जयशंकर प्रसाद जी द्वारा लिखी गई है। जयशंकर प्रसाद जी की यह कविता उनकी रचना लहर नामक रचना से ली गई है। इन काव्य पंक्तियों में जयशंकर प्रसाद जी ने प्रातः कालीन शोभा का वर्णन किया गया है। इसलिए इस कविता को बीती विभावरी जाग री नाम दिया है। बीती विभावरी जाग री यानी अंधेरी रात बीत गई है अब तो तू “है प्रातः कालीन नायिका तू जाग जा”। उन्होंने मानवीकरण अलंकार का प्रयोग करते हुए प्रकृति को नायिका के रूप में प्रस्तुत किया है। इसलिए कवि कह रहे हैं कि

बीती विभावरी जाग री!

अंबर पनघट में डुबी रही –

तारा घट उषा नागरी।

कवि कहता है कि अंधकार पूर्ण रात तो बीत गई है। इसलिए अब तू प्रकृति रूपी नायिका जाग जा । अब वह कह रहे हैं कि रात के बीत जाने पर यानी जब प्रातः काल का समय होता है, जब सुबह होती है। अगले दिन की तब क्या हो रहा है? तब ऐसा क्या लगता है? उन्हें कैसा महसूस हो रहा है? इन बातों को वह पंक्तियों के माध्यम से अपने काव्य पंक्तियों के माध्यम से कह रहे हैं।

अंबर पनघट में डुबो रही –

तारा घट उषा नागरी

अंबर रूपी पनघट में, आकाश को उन्होंने पनघट के समान बताया गया है। उसमें तारा रूपी घटकों यानी एक मटके को ऊषा नागरी “प्रातः कालीन रूपी नायिका” डुबो रही है। नागरी का अर्थ यहां चतुर से है। यानि नायिका इतनी चतुर है कि वह अंबर रूपी पनघट में तारों रूपी घट को डुबो रही है।

कहने का अर्थ है आप कल्पना कीजिए कि जैसे रात्रि से जब प्रातः काल का समय आता है तो उसके जो बीच का समय है, उस समय जब तारे छिपने को होते हैं और हल्का सा सूर्य निकलने को होता है तो उस समय तारे आसमान में ऐसा लग रहा है, मानो डूब रहे हैं और आकाश एक पनघट है और उषा यानी जो प्रातः काल का जो समय है, वह एक चतुर नायिक है। प्रातः कालीन जो चतुर नायिका है, वह अंबर रूपी पनघट में तारे तारों रूपी घड़े को डुबो रही है। उन्हें ऐसा प्रतीत होता है।

खग-कुल कुल कुल सा बोल रहा,

किसलय का अंचल डोल रहा।

प्रातः काल का समय होने पर जो पक्षी है, वह कुल कुल की आवाज कर रहे हैं। हर जगह उनकी चहचाहट की आवाजें आ रही हैं। किसलय का मतलब होता है नए और कोमल पत्ते जो पेड़ और पौधों पर आए। उनका आंचल डोल रहा है। आंचल डोल से अर्थ है जब हवा चलती है तो वह हिलते हैं। उन्हें हिल करते हुए देखकर जयशंकर प्रसाद जी को लगता है कि मानो आंचल डोल रहा है। जब प्रातः कालीन का समय होता है और हवा चलती है, उससे पेड़ पौधों के पत्ते हिल रहे हैं तो उसे ऐसा लगता है मानो वह पत्ते आंचल हवा से खेल रहे हैं।

लो यह लतिका भी भर लायी – 

मधु मुकुल नवल रस गागरी

लता के खिलने पर जो नई कली होती है, उसके बारे में बताया है कि वह भी पराग रस से भरकर खिल गई है। मधु मुकुल यानी जो पराग का जो रस होता है उसे पाकर नवल यानी नई रस से भरकर एक कली खिल गई है। कवि कहना चाहता है कि यह लता पर जो नई कली खिली है यानी टहनी पर जो फूल की कली खिली है। पराग को अपने अंदर भरकर खिल गई।

अधरों मे राग अमंद लिये

अलकों में मलयज बंद किए –

तू अब तक सोयी है आली –

आंखों में भरे बिहारी री!

प्रातः कालीन नायिका को सखी बताते हुए। कवि कहता है कि हे सखी (आली) तू अभी तक सोई हुई है। तू अभी तक जगी नहीं है। क्योंकि तूने अपने होठों में तो लाल रंग को बहुत अधिक (अमंद) भर रखा है और अलकों में यानी अपने बालों में खुशबू भर रखी है।

तूने अपनी आंखों में प्रातः कालीन लालिमा को छुपा रखा है तो इसलिए तू अब तक सोई हुई है। अरे अब तो तू जाग जा। प्रातकाल होते ही सारा प्राकृतिक वातावरण एकदम आनंदमय और मनोरम लगता है। इसलिए वह कहते हैं कि प्रकृति नायिका तूने अपने होठों में अत्यधिक लालिमा और बालों में खुशबू को तूने छुपा रखा है।

वह प्रकृति को नायिका मानते हैं, इसलिए उन्होंने ऐसी कल्पना की है और वह कहते हैं कि तू अभी तक सोई हुई है। अर्थात कि अभी तक तेरी आंखों में भरे बिहाग यानी कि तेरी आंखों में अभी तक प्रातः कालीन लालिमा भरी हुई है। तो इसलिए अब तू जाग जा। अब तो उठ जा।

NIOS SOLVED ASSIGNMENT 2021-22

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